Jaunpur News: यूपी के जौनपुर जिले के मछलीशहर पड़ाव के पास सोमवार की शाम बारिश के बीच एक दर्दनाक हादसे ने पूरे जनपद को झकझोर कर रख दिया। सड़क किनारे खुले मैनहोल में अचानक एक युवती फिसलकर गिर गई। पानी का बहाव इतना तेज था कि वह देखते ही देखते नाले की गहराई में समा गई। इस घटना से मौके पर अफरा-तफरी मच गई। इसी बीच कुल्हनामऊ निवासी ई-रिक्शा चालक शिवा गौतम ने अपनी जान की परवाह किए बिना युवती को बचाने के लिए नाले में छलांग लगा दी। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। नाले के पास खड़े विद्युत खंभे की चपेट में आने से शिवा गंभीर रूप से झुलस गए और उनकी मौत हो गई। जबकि, युवती का अब तक कोई पता नहीं चल पाया है। वहीं, शिवा की कुर्बानी ने पूरे शहर को इंसानियत और बलिदान का सच्चा अर्थ समझा दिया। लोग उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं।
हादसे के बाद प्रशासन हरकत में, लेकिन सवाल बरकरार
बता दे कि, इस हादसे के बाद जिला प्रशासन हरकत में आया। जिलाधिकारी से लेकर पुलिस कप्तान तक रातभर रेस्क्यू ऑपरेशन में जुटे रहे। तमाम टीमें लगाई गईं, टॉर्च की रोशनी में नाले के अंधेरों को चीरा गया, लेकिन युवती लापता रही। अब ऐसे में सवाल यह है कि आखिर इस हादसे का जिम्मेदार कौन है? क्या बारिश ने शिवा गौतम को मारा? या यह मौत सीधे-सीधे सिस्टम की लापरवाही का नतीजा है? फिलहाल, जौनपुर की हकीकत सबके सामने है। शहर से लेकर गांवों तक की सड़कें टूटी है, सड़कों के किनारे फैले ये खुले नाले कब किसे निगल लें, कहना मुश्किल है। हर साल करोड़ों रुपये सफाई और ढक्कन लगाने के नाम पर खर्च होते हैं, लेकिन बरसात होते ही सारे दावों और वादों की पोल खोल देती है।
जनता के सवाल: विकास के नारों के बीच क्यों मौत के नाले?
हादसे के बाद अब आम जनता व्यवस्था से सवाल पूछ रही है—अगर करोड़ों का बजट बहता है तो फिर सड़क किनारे खुले मैनहोल पर ढक्कन क्यों नहीं लगते? अगर सफाई की व्यवस्था होती है तो नाले लोगों की जिंदगी छीनने का रास्ता क्यों बन जाते हैं? अफसरों और नेताओं के लिए यह भले ही एक साधारण दुर्घटना हो, लेकिन जौनपुर की जनता के लिए यह जीवन का भयावह सच है। यही हमारे सिस्टम का व्यंग्य है, जहाँ शहर की दीवारें स्मार्ट सिटी और विकास के बड़े-बड़े पोस्टरों से पटी पड़ी हैं, मंचों से उपलब्धियों के ढोल पीटे जाते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत में जौनपुर की पहचान अब ऐतिहासिक और शिक्षा नगरी से ज्यादा मौत के नालों और गड्ढा युक्त सड़कों का शहर बनती जा रही है। जब अफसरों, नेताओं और मंत्रियों का काफिला निकलता है तो सड़कें चमचमाती दिखती हैं, मगर आम आदमी की बुनियादी सुविधाओं और सुरक्षा पर कभी किसी की नजर नहीं जाती। हादसे के बाद फिर वही पुरानी बातें ढांढस, बयान और जांच का आश्वासन। लेकिन जनता जानती है कि सवाल वही रहेंगे और जवाब कभी नहीं मिलेंगे।
शिवा गौतम की शहादत: सिस्टम के लिए एक कड़ा सवाल
शिवा गौतम की शहादत सिर्फ उनके परिवार का नहीं, बल्कि पूरे समाज का नुकसान है। लोगों का कहना है कि उन्होंने अपनी जान देकर इंसानियत को बचाने की कोशिश की। उनके साहस को सलाम है, लेकिन उनका बलिदान यह भी कह रहा है कि अब बहुत हो चुका। जौनपुर को अब सवाल करना ही होगा। आखिर कब तक इसकी गलियां और नाले आम आदमी की लाशों से भरते रहेंगे? कब तक जनता को बरसात के मौसम में जिंदगी दांव पर लगानी पड़ेगी? और कब तक सरकारें व प्रशासन इस सबको किस्मत और दुर्घटना कहकर पल्ला झाड़ते रहेंगे? रिक्शा चालक शिवा का जाना पूरे जौनपुर के लिए गहरा आघात है। उनकी बहादुरी अमर है, लेकिन यह हादसा सिस्टम की नाकामी का सजीव प्रमाण है। अब वक्त है कि जिम्मेदार जागें, वरना पूरे जिले की जनता यह मानने को मजबूर हो जाएगी कि यहां इंसानियत तो जिंदा है, लेकिन व्यवस्था पूरी तरह से मर चुकी है।